चंदन का टीका रेशम का धागा; सावन की सुगंध बारिश की फुहार; भाई की उम्मीद बहना का प्यार;
मुबारक हो आपको “”रक्षा-बंधन”” का त्योहार ।
महाराष्ट्र राज्य में यह त्यौहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से मशहूर है । इस दिन लोग समुद्रतट या नदी के किनारे अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र या नदी की पूजा, अराधना करते हैं । इस मौके पर समुद्र के स्वामी वरूण देवता को प्रसन्न करने के लिए नारियल चढ़ाने की परंपरा के कारण रक्षाबंधन के दिन मुंबई के समुद्र तट नारियलों से भर जाते हैं ।
राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी अथवा लूंबा बांधने का प्रचलन है । रामराखी सामान्य राखी से अलग होता है जिसमें लाल डोरे पर एक पीले छीटों वाला फुदना लगा होता है, जिसे केवल भगवान को ही बाँधा जाता है । चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों की शोभा बढ़ाती है । जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बाँधी जाती है, बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर, मिट्टी और भस्मी से स्नाकर शरीर को शुद्ध किया जाता है । इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अंरूधती, गणपति, दुर्गा, गोमिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के पूजास्थल बनाकर मंत्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती है एवं उनका तर्पण कर पितृऋण चुकाया जाता है । धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है तथा वहीं रेशमी डोरे से राखी बनाकर कच्चे दूध से अभिमंत्रित करने के उपरान्त भोजन किया जाता है ।
तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अक्तिम कहते हैं । यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मण इस दिन नदी या समुद्र तट पर स्नादि के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यशोपवीत धारण किया जाता है । विगत वर्षों के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत की तरह त्याग देने और स्वच्छ नया यज्ञोपवीत की तरह नए जीवन की शुरूआत करने की प्रतिज्ञा ली जाती है । इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 मास के लिए वेद अध्ययन प्रारंभ करते हैं । इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका अर्थ है- नई शुरूआत । व्रत में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक सभी मंदिरों तथा घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं और रक्षाबंधन वाले दिन झूलन दर्शन समाप्त होते हैं ।
खटीमा, उत्तरांचल (वार्ता) : रक्षाबंधन के दिन जहां एक तरफ बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांध उनकी सलामती की दुआएं मांगती हैं, वहीं उत्तरांचल के चंपावत जिले में देवीधुरा स्थित मंदिर के प्रांगण में हर साल सैकड़ों योद्धा इन्हीं राखी बंधे हाथों से एक-दूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं। महापाषाण काल से ही यह युद्ध हर साल सिर्फ रक्षाबंधन के दिन होता है।
किंवदंती के अनुसार, महापाषाण काल के दौरान देवताओं के गणों को प्रसन्न रखने के लिए उन्हें नरबलि देने के प्रावधान से बचने के लिए बताये गए उपाय के तहत ही यह प्रथा आज भी यहां जारी है। उत्तरांचल के कुमाऊं में चंपावत जिले के पंचायत उपाध्यक्ष बहादुर सिंह पाटनी ने बताया कि चंपावत जिला प्रशासन को देश और विदेश से कई पर्यटकों के 'पत्थर युद्ध' देखने आने की खबर मिली है।
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