पवन तनय संकट हरण मंगलमूर्ति रूप I
राम लखन सीता सहित ह्रदय बसहु सुर भूप II
गढ़वाल के प्रवेशद्वार कोटद्वार कस्बे से कोटद्वार-पौड़ी राजमार्ग पर लगभग ३ कि०मी० आगे खोह नदी के किनारे बांयी तरफ़ एक लगभग ४० मीटर ऊंचे टीले पर स्थित है गढ़वाल प्रसिद्ध देवस्थल सिद्धबली मन्दिर । यह एक पौराणिक मन्दिर है । कहा जाता है कि यहां तप साधना करने के बाद एक सिद्ध बाबा को हनुमान की सिद्धि प्राप्त हुई थी । सिद्ध बाबा ने यहां बजरंगबली की एक विशाल पाषाणी प्रतिमा का निर्माण किया। जिससे इसका नाम सिद्धबली हो गया (सिद्धबाबा द्वारा स्थापित बजरंगबली ।
इस स्थान का जीर्णोद्वार एक अंग्रेज अधिकारी के सहयोग से हुआ। कहते हैं कि इस स्थान के समीप एक अंग्रेज अधिकारी (जो खमा सुपरिटेंडेंट हुआ करता था।) ने एक बंगला बनवाया जो आज भी इस स्थान पर मौजूद है। जब घोड़े पर चढ़कर इस बंगले पर रहने के लिए आया तो घोड़ा आगे नहीं बढ़ा तब उसने घोड़े पर चाबुक मारा तो घोड़े के अधिकारी को जमीन पर पटक दिया। तो वह बेहोश हो गया। उस अधिकारी को बेहोशी में सिद्धबाबा ने दर्शन देकर कहा कि इस स्थान पर मेरे द्वारा पूजे जाने वाली पिण्डियाँ जो खुले स्थान पर हैं। उनके लिए स्थान बनाओ तभी तुम इस बंगले में रह सकते हो, तभी उस अधिकारी द्वारा जन सहयोग से इस स्थान का जीर्णोद्धार किया गया। जो आज धीरे–धीरे भक्तों एवं श्रद्धालुओं के सहयोग से भव्य रूप धारण कर चुका है।
यह मन्दिर न केवल हिन्दू-सिक्ख धर्मावलंबियों का है अपितु मुसलमान भी यहां मनौतियां मांगने आते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु लोग दक्षिणा तो देते हैं ही यहां भण्डारा भी आयोजित करते हैं । इस स्थान पर कई अन्य ऋषि मुनियों का आगमन भी हुआ है। इन संतो में सीताराम बाबा, ब्रह्मलीन बाल ब्रह्मचारी नारायण बाबा एवं फलाहारी बाबा प्रमुख हैं। यहां साधक को शांति अनुभव होती है।
यह मन्दिर का अदभुत चमत्कार ही है कि खोह नदी में कई बार बाढ़ आई किन्तु मन्दिर ध्वस्त होने से बचा है। यद्यपि नीचे की जमीन खिसक गई है किन्तु मन्दिर आसमान में ही लटका हुआ है। यहां प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं के द्वारा मेले का आयोजन होता है। जिसमें सभी धर्मों के लोग भाग लेते हैं।
श्री सिद्धबली धाम की महत्ता एवं पौराणिकता के विषय में कई जनश्रुतियां एवं किंवदन्तियां प्रचलित हैं। कहा जाता है। स्कन्द पुराण में वर्णित जो कौमुद तीर्थ है उसके स्पष्ट लक्षण एवं दिशायें इस स्थान को कौमुद तीर्थ होने का गौरव देते हैं स्कन्द पुराण के अध्याय 119 (श्लोक 6) में कौमुद तीर्थ के चिन्ह के बारे में बताया गया है कि
तस्य चिन्हं प्रवक्ष्यामि यथा तज्ज्ञायते परम्।
कुमुदस्य तथा गन्धो लक्ष्यते मध्यरात्रके।।
अर्थात महारात्रि में कुमुद (बबूल) के पुष्प की गन्थ लक्षित होती है। प्रमाण के लिए आज भी इस स्थान के चारों ओर बबूल के वृक्ष विद्यमान है। कुमुद तीर्थ के विषय में कहा गया है कि पूर्वकाल में इस तीर्थ में कौमुद (कार्तिक) की पूर्णिमा को चन्द्रमा ने भगवान शंकर को तपकर प्रसन्न किया था। इसलिए इस स्थान का नाम कौमुद पड़ा। शायद कोटद्वार कस्बे को तीर्थ कौमुद द्वार होने के कारण ही कोटद्वार नाम पड़ा। क्योंकि प्रचलन के रूप में स्थानीय लोग इस कौमुद द्वार को संक्षिप्त रूप में कौद्वार कहने लगे जिसे अंग्रेजों के शासन काल मे अंग्रेजों के सही उच्चारण न कर पाने के कारण उनके द्वारा कौड्वार कहा जाने लगा। जिससे उन्होंने सरकारी अभिलेखों में कोड्वार ही दर्ज किया और इस तरह इसका अपभंरश रूप कोटद्वार नाम प्रसिद्ध हुआ। परन्तु वर्तमान में इस स्थान को सिद्धबाबा के नाम से ही पूजा जाता है। कहते हैं कि सिद्धबाबा ने इस स्थान पर कई वर्ष तक तप किया। श्री सिद्धबाबा को लोक मान्यता के अनुसार साक्षात गोरखनाथ माना जाता है जो कि कलियुग में शिव के अवतार माने जाते हैं। गुरु गोरखनाथ भी बजरंगबली की तरह एक यति है। जो अजर और अमर हैं।
इस स्थान को गुरु गोरखनाथ के सिद्धि प्राप्त होने के कारण सिद्ध स्थान माना गया है एवं गोरखनाथ जी को इसीलिए सिद्धबाबा भी कहा गया है। नाथ सम्प्रदाय एवं गोरख पुराण के अनुसार नाथ सम्प्रदाय के गुरु एवं गोरखनाथ जी के गुरु मछेन्द्र नाथ जी पवन पुत्र बजरंगबली के आज्ञानुसार त्रिया राज्य में (जिसे चीन के समीप माना जाता है जिसकी शासक रानी मैनाकनी थी के साथ ग्रहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे। परन्तु उनके परम तेजस्वी शिष्य गोरखनाथ जी को जब यह ज्ञात होता है तो उन्हें बड़ा दुख एवं क्षोभ हुआ तो वह प्रण करते हैं कि उन्हें किसी भी प्रकार उस राज्य से मुक्त किया जाय। जब वे अपने गुरु को मुक्त करने हेतु त्रिया राज्य की ओर प्रस्थान करते हैं तो पवन पुत्र बजरंग बली अपना रूप बदलकर इस स्थान पर उनका मार्ग रोकते हैं। तब दोनों यतियों के मध्य भयंकर युद्ध होता है। पवन पुत्र को बड़ा आश्चर्य होता है कि वे एक साधारण साधु को परास्त नहीं कर पा रहे है। उन्हे पूर्ण विश्वास हो जाता है कि यह दिव्य पुरुष भी मेरी तरह ही कोई यति है। तब हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में आते हैं और गुरु गोरखनाथ जी से कहते हैं कि मैं तुम्हारे तप बल से अति प्रसन्न हूँ । जिस कारण तुम कोई भी वरदान मांग सकते हो तब श्री गुरु गोरखनाथ जी कहते हैं कि तुम्हें मेरे इस स्थान में प्रहरी की तरह रहना होगा एवं मेरे भक्तों का कल्याण करना होगा। विश्वास है कि आज भी यहाँ वचनबद्ध होकर बजरंग बली जी साक्षात उपस्थित रहते हैं तबसे ही इस स्थान पर बजरंग बली की पूजा की विशेष महत्ता है और इन्हीं दो यतियों (श्री बजरंग बली जी एवं गुरु गोरखनाथ जी जो सिद्धबली बाबा के नाम से पुकारते हैं । यहाँ पर श्री गुरु गोरखनाथ जी ने अपना स्थायी स्थान बनाकर अपने शिष्य पवन नाथ को नियुक्त किया।
इस स्थान पर सिखों के गुरु संत गुरुनानक जी ने भी कुछ दिन विश्राम किया। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान को सभी धर्मावलम्बी समान रूप से पूजते एवं मानते हैं।