Monday 4 August 2014

सरस्वती मंदिर माणा उत्तराखंड -यहीं देवी सरस्वती पहली बार प्रकट हुई थी।


बसंत पंचमी को विद्या और वाणी की देवी सरस्वती का जन्मोत्सव दिवस कहा जाता है। धरती पर एक स्थान ऐसा है जहां पहुंचकर आपको यह एहसास होगा कि देवी सरस्वती यहां विराजमान हैं।

माना जाता है कि यहीं देवी सरस्वती पहली बार प्रकट हुई थी। इसलिए इसे सरस्वती का जन्मस्थान भी कहा जाता है। यह स्थान बद्रीनाथ से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर माणा गांव के पास स्थित है। यहां पर्वत के बीच से सरस्वती नदी की कलकल धारा का उद्गम होता है।इस उद्गम स्थल पर देवी सरस्वती का एक छोटा सा मंदिर है। माना जाता है इस मंदिर में देवी सरस्वती की प्रतिमा के दर्शन से साक्षात् सरस्वती के दर्शनों का लाभ मिलता है। माना जाता है कि देवी सरस्वती के हाथों में वीणा है जिसके सात सुरों से संसार में संगीत और जीव जंतुओं को वाणी मिली है।

सरस्वती माता के मंदिर के ठीक बाहर सरस्वती की जलधारा पर जब सूर्य की रोशनी पड़ती है तो पत्थरों और पानी पर इन्द्रधनुष के सात रंग नजर आते हैं। लोग ऐसा मानते हैं कि यह सरस्वती की वीणा के सप्तसुर की रश्मियां हैं। दर्शनार्थी इसके दर्शन से स्वयं को धन्य और आनंदित महसूस करते हैं।

माघ शुक्ल पंचमी यानी बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा होती है। वेद और पुराणों में बताया गया है कि ज्ञान और वाणी की देवी मां सरस्वती इसी दिन प्रकट हुई थी।इसलिए इस तिथि को सरस्वती जन्मोत्सव भी कहा जाता है। पुराणों में देवी सरस्वती के प्रकट होने की जो कथा है उसके अनुसार सृष्टि का निर्माण कार्य पूरा करने के बाद ब्रह्मा जी ने जब अपनी बनायी सृष्टि को देखा तो उन्हें लगा कि उनकी सृष्टि मृत शरीर की भांति शांत है।इसमें न तो कोई स्वर है और न वाणी।अपनी उदासीन सृष्टि को देखकर ब्रह्मा जी निराश और दुःखी हो गये। ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास गये और अपनी उदासीन सृष्टि के विषय में बताया। ब्रह्मा जी की बातों को सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि आप देवी सरस्वती का आह्वान कीजिए।
 आपकी समस्या का समाधान देवी सरस्वती ही कर सकती हैं।भगवान विष्णु के कथनानुसार ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती देवी का आह्वान किया। देवी सरस्वती हाथों में वीणा लेकर प्रकट हुई। ब्रह्मा जी ने उन्हें अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर भरने का अनुरोध किया।देवी सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ उससे 'सा' शब्द फूट पड़ा।

इसी से संगीत के प्रथम सुर का जन्म हुआ। सा स्वर के कंपन से ब्रह्मा जी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा। हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को वाणी मिल गयी। नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी। इससे ब्रह्मा जी अति प्रसन्न हुए उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया।माता सरस्वती का एक नाम यह भी है। हाथों में वीणा होने के कारण मां सरस्वती वीणापाणि भी कहलायी।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को जल में ही क्यों विसर्जित कर दिया जाता है। पण्डित मुरली झा बताते हैं कि इसका उत्तर शास्त्रों में है। शास्त्रों के अनुसार जल ब्रह्म का स्वरुप माना गया है। क्योंकि सृष्टि के आरंभ में और अंत में संपूर्ण सृष्टि में सिर्फ जल ही जल होता है।

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