देवी अनुसूया महर्षि अत्रि
की पत्नी थी ! अनुसूया जिसका अर्थ किसी से भी इर्ष्या भाव न रखना उनके चरित्र को सार्थक
करता हैं ! देवी अनुसूया का नाम पतिव्रता स्त्रियों में सर्वप्रथम श्रेणी में रखा जाता
हैं!
पृथ्वी पर ही नहीं वरन
देवलोक में भी उनके सत्तित्व को देवगण सम्मान देते हैं ! कहा जाता हैं उनके सतित्त्व
की परीक्षा स्वयं त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश ने ली थी !
देवी अनुसूया महर्षि कर्दम
की पुत्री थी और इनकी माता का नाम देवहुति था ! इनका विवाह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र
महर्षि अत्रि से हुआ था और विवाह के पश्चात् अपने सेवा भाव तथा धर्मपरायणता से इन्होने
महर्षि अत्रि का ह्रदय जीत लिया ! इनके में
यह भी कहा जाता हैं कि सम्पूर्ण भारतवर्ष में इनका नाम पतिव्रता स्त्रियों तथा धर्म
परायणता में सबसे ऊपर और विशिष्ट हैं!वनवास के समय जब श्री
राम, सीता और लक्ष्मण सहित जब महर्षि अत्रि
के आश्रम पहुचे तो देवी अनुसूया ने माता सीता को पति धर्म की सम्पूर्ण शिक्षा प्रदान
दी थी !
जब ब्रह्मा, विष्णु और
महेश ने इनके सतीत्व की परीक्षा ली थी तब उनके सतित्त्व से प्रसन्न होकर उन्होंने इन्हें
आशीर्वाद प्रदान किया था कि वे तीनो स्वयं उनके पुत्र के रूप में उनके गर्भ से जन्म
लेंगे! ब्रह्मा के रूप में सोम, विष्णु के रूप दत्तात्रेय और महेश के रूप में दुर्वासा
उनके पुत्र हुए !
गोपेश्वर। पुराणों में
मां अनुसूया को सती शिरोमणि का दर्जा प्राप्त है। अनसूया मंदिर के निकट अनसूया आश्रम
में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) ने अनुसूया माता के सतीत्व की परीक्षा ली थी।
देवी अनुसूया देवी की
त्रिदेव द्वारा परीक्षा
त्रि देवों की देवी अनुसूया की पतिव्रता की यह कथा
श्री मदभगवत में भी वर्णित हैं ! जिसके अनुसार त्रिदेवों ने सन्यासियों का भेष बना
देवी अनुसूया के आश्रम पर पहुचे !उस समय महर्षि अत्रि किसी
कारणवश आश्रम में उपस्थित नहीं थे !जब सन्यासियों को देवी
अनुसूया ने आश्रम में देखा तो उनका आदर सत्कार करना चाहा पर सन्यासी बने हुए त्रि देवों
ने आतिथ्य को अस्वीकार कर दिया !
देवी अनुसूया इससे बहुत
दुखी हुई और उन्होंने आतिथ्य अस्वीकार करने का कारण सन्यासियों से पूछा !
तब सन्यासियों ने देवी
अनुसूया से कहा कि वे उन्हें निर्वाण भिक्षा प्रदान करे - निर्वाण भिक्षा अर्थात बिना
किसी वस्त्र के उन्हें भिक्षा दे ! तभी वे उनका आतिथ्य स्वीकार करेंगे !
देवी अनुसूया यह सुनकर धर्म संकट में पड़ गई ! यह
उनके सतित्त्व धर्म के विरुद्ध था लेकिन द्वार पड़ आये अतिथि को लौटना भी उनके कर्तव्य
परायणता के विरुद्ध था और भगवान् को रुष्ट करना था!
देवी अनुसूया अपने पतिव्रता
की धर्म में रोज महर्षि अत्रि के चरणों को जल से धोती और उसे अपना आश्रय में रखती थी
! इस प्रकार अपने पति अथवा गुरु के चरणों को धोकर वह जल पथ पूजा के लिए रख लेती थी
और इस प्रकार जो जल वह रखती थी वह चरणामृत एक पवित्र जल था जिसे उन्होंने अपने सतित्त्व
को बचाने के लिए अपने पतिव्रत धर्म को याद कर मन में संकल्प किया कि यदि आज तक कभी
मैंने अपने पति के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष का चिंतन व् काम भाव से मनन न किया हो
तो अभी ये तीनो सन्यासी छः - २ माह के बच्चे में परिवर्तित हो जाए ! और वह चरनामृत
उन सन्यासियों पर छिड़क दिया !
जैसे ही उन्होंने जल का
छिडकाव उन सन्यासियों के ऊपर किया वे सभी छः माह के शिशुओं में परिवर्तित हो गए !इस
प्रकार उसी समय, मातृत्त्व भाव से वशीभूत होकर, छः माह के शिशुओं में परिवर्तित त्रिदेवों
को देवी अनुसूया ने निर्वाण भिक्षा में पुत्र बना कर उन्हें स्तनपान करा वात्सल्य प्रेम
से भाव विभोर कर दिया!
देवी अनुसूया ने महर्षि अत्रि के आने का इन्तजार
करने लगी कि ये घटना वे उन्हें बतायेंगी पर अपने दिव्य दृष्टी से महर्षि अत्रि यह घटना
जान चुके थे और आकर उन्होंने बालक बने त्रिदेवों को अपने गले से लगा लिया! इधर त्रिदेवों
को वापस लौटते न देख त्रिदेवियाँ भी चित्रकूट के महर्षि अत्रि के आश्रम में पहुच गई
! वहां अपने पतियों को छह माह के शिशुओं के रूप में देख वह सभी देवी अनुसूया के पतिव्रत से बहुत प्रसन्न हुई लेकिन
अपने पतियों को पुनः उनके वास्तविक रूप में पाना तभी संभव था जबकि देवी अनुसूया से
स्वयं वे पति भिक्षा मांगती ! तब त्रि देवियों ने देवी अनुसूया से अपने २ पति को वास्तविक
रूप में पाने के लिए देवी अनुसूया से प्रार्थना की और पति भिक्षा मांगी ! देवी अनुसूया
ने महा देवियों को वरदान में उनके पति का वास्तविक रूप प्रदान किया! तब त्रिदेव अपने
वास्तविक रूप में आये और उन्होंने देवी अनुसूया
के सतीत्व और पतिव्रत से प्रसन्न हो उन्हें आशीर्वाद और वरदान दिया कि उनके तीन पुत्र
होंगे जो की त्रिदेव के समान ही होंगे !
इस प्रकार देवी अनुसूया
के तीन पुत्रों में ब्रह्मा जी के वरदान से सोम, विष्णु से दत्तात्रेय और महेश से दुर्वाषा
जी का जन्म हुआ !
मान्यता के अनुसार एक बार महर्षि नारद ने त्रिदेवियों
(सरस्वती, लक्ष्मी व पार्वती) से कहा कि तीनों लोकों में अनसूया से बढ़कर कोई सती नहीं
है। नारद मुनि की बात सुनकर त्रिदेवियों ने त्रिदेवों को अनसूया के सतीत्व की परीक्षा
लेने के लिए मृत्युलोक भेजा। तीनों देवता अनसूया आश्रम में साधु वेष में आए और मां
अनसूया से नग्नावस्था में भोजन करवाने को कहा। साधुओं को बिना भोजन कराये सती मां वापस
भी नहीं भेज सकती थी। तब मां अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल से तीनों देवों
पर जल छिड़ककर उन्हें शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और स्तनपान कराया। कई सौ सालों
तक जब तीनों देव अपने स्थानों पर नहीं पहुंचे तो चिंतित होकर तीनों देवियां अनसूया
आश्रम पहुंची तथा मां अनुसूया से क्षमा याचना कर तीनों देवों को उनके मूल स्वरूप में
प्रकट करवाया। तब से इस स्थान पर सती मां अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता
है। मार्गशीष पूर्णिमा को प्रत्येक वर्ष दत्तात्रेय जयंती पर यहां दो दिन विशाल मेला
भी लगता है। रक्षाबंधन को यहां ऋषितर्पणी मेला लगता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-
प्राचीन काल में यहां
पर देवी अनुसूया का छोटा सा मंदिर था। सत्रहवीं सदी में कत्यूरी राजाओं ने इस स्थान
पर अनुसूया देवी के भव्य मंदिर का निर्माण किया था, मगर अठारहवीं सदी में विनाशकारी
भूकंप से यह मंदिर ध्वस्त हो गया था। बाद में संत ऐत्वारगिरी महाराज ने निंगोल गधेरे
व मैनागाड़ गधेरे के बीच के क्षेत्र के ग्रामीणों की मदद से इस मंदिर का निर्माण कराया।
मंदिर स्थानीय पत्थरों से बनाया गया है।
सामयिकता
- नवरात्र में अनसूया
देवी के मंदिर में नौ दिन तक मंडल घाटी के ग्रामीण मां का पूजन करते है। इस मंदिर की
विशेषता यह है कि अन्य मंदिरों की तरह यहां पर बलि प्रथा का प्रावधान नहीं है। यहां
श्रद्धालुओं को विशेष प्रसाद दिया जाता है। यह स्थानीय स्तर पर उगाए गए गेहूं के आटे
का होता है।
ऐसे पहुंचे-
ऋषिकेश से चमोली तक
250 किलोमीटर सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। यहां से दस किलोमीटर गोपेश्वर पहुंचने
के बाद 13 किलोमीटर दूर मंडल तक भी वाहन की सुविधा है। मंडल से पांच किलोमीटर पैदल
चढ़ाई चढ़कर मां के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
No comments:
Post a Comment