Tuesday 8 July 2014

भगवान शिव विश्वंभर नाथ का प्रथम ज्योतिर्लिंग -जागेश्वर धाम






  भगवान शिव विश्वंभर नाथ का प्रथम ज्योतिर्लिंग -जागेश्वर धाम


“सौराष्ट्रे सोमनाथं चश्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकार ममलेश्वरम्।।1।।
परल्यां वैद्यनाथम च डाकिन्यांभीमशंकरम्।सेतुबन्धे तुरामेशं नागेशं दारूकावने।।2।।
वाराण्यस्यां तुविश्वेशं त्र्यम्बकंगौतमीतटे।हिमालयेतु केदारं घुश्मेशं च शिवालये।।3।।

     

भगवान शिव विश्वंभर नाथ का प्रथम ज्योतिर्लिंग देवभूमि हिमालय के जागेश्वर में स्थित है. जागेश्वर का प्राचीन मृत्युंजय. मंदिर धरती पर स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों का उद्गम स्थल है. इसके पौराणिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक प्रमाण प्रचुर मात्रा में मिलते हैं. यहां का प्राकृतिक वैभव हर पर्यटक-तीर्थयात्री का मन मोह लेती है. देवों के देव महादेव यहां आज भी वृक्ष वेश में युगल रूप से मां पार्वती सहित विराजते हैं. ऐसी मान्यता लेकर हज़ारों श्रद्धालु यहां हर वर्ष अपनी मनोकामना लेकर खिंचे चले आते हैं. यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है. भगवान शिव-पार्वती के युगल रूप का दर्शन यहां आने वाले श्रद्धालु नीचे से एक और ऊपर दो युगल शाखाओं में स्थित विशाल देवदारू के वृक्ष में करते हैं, जो 62.80 मीटर लंबा और 8.10 मीटर व्यास का है. उत्तराखंड के कुमाऊं एवं गढ़वाल जिले का यह इलाका सदा से देवों का निवास स्थान होने के कारण देवभूमि के नाम से जग में विख्यात है. भारत की सनातन संस्कृति में त्रय देवों में भगवान शिव को महादेव के नाम से पुकारा जाता है.

उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग २५० छोटे-बडे मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकडी तथा सीमेंट की जगह पत्थर की बडी-बडी shilaon से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया है।

अल्मोड़ा से 34 किमी. दूर स्थित जागेश्वर धाम है जो अपने मंदिरों के लिये विश्व प्रसिद्ध है। जागेश्वर में जो मंदिर हैं ये 8वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच बने हुए हैं। जागेश्वर के मंदिर अपने वास्तुकला के लिये बेहद प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों का निर्माण चन्द और कत्यूर वंश के राजाओं के द्वारा किया गया है। जागेश्वर धाम 124 मंदिरों का समूह है जिसमें हर आकार के मंदिर हैं। कुछ बहुत बड़े तो कुछ बहुत छोटे।

जागेश्वर में बेहद कई देवी-देवताओं की बेहद आकर्षक मूर्तियां हैं। शिव-पार्वती और विष्णु भगवान की मूर्तियां विशेष रूप से आकर्षक हैं। महामृत्युंजय और जागेश्वर भगवान के मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर माने जाते हैं। जागेश्वर धाम से से पहले दंडेश्वर मंदिर पड़ता है। यहां पर काफी विशाल मंदिर हैं। इन मंदिरों की उंचाई लगभग 100 फुट तक है। इन मंदिरों के उपरी भाग में छत जैसी बनी हुई हैं जिनमें कलश रखे गये हैं।

पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियोंने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजयमें स्थापित शिवलिंगको कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएंही पूरी हो सकती हैं।


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