Thursday 23 October 2014

Happy Diwali !! मैं बैठा दूर परदेश में घर में आज दिवाली है


“May the passion and splendor that are a part of this auspicious holy festival, fill your entire life with happiness, prosperity and a much brighter future. Warm wishes to you and your family on this Festival of Lights.” 



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मैं बैठा दूर परदेश में घर में आज दिवाली है मेरा आँगन सूना है माँ की आँखों में लाली है वो बार बार मुझे बुलाती है फिर अपने दिल को समझाती है मेरी भाग्य की चिंता पर अपने मातृत्व को मनाती है

मैं कितना खुदगर्ज़ हुआ पैसो की खातिर दूर हुआ मेरा मन तो करता है पर न जाने क्यूँ मजबूर हुआआज फटाको की आवाजों में मेरी ख़ामोशी झिल्लाती  है कैसे बोलूं माँ तुझको तेरी याद मुझे बहुत आती है

इतना रोया मैं, आज कि मेरी आँखें अब खाली है तुझ से दूर मेरे जीवन की ये पहली एक दिवाली है

                        माँ मेरा आँगन सूना है तेरी की आँखों में लाली है 


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दीपावली का अर्थ  



दीपावली का अर्थ  है दीपों की पंक्ति। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले त्योहारों में दीपावली का आध्यात्मिक व सामाजिक दोनों दृष्टि से सबसे ज्यादा महत्व है।

इस त्योहार का मूल मंत्र ही माना जाता है- 'तमसो मा ज्योतिर्गमय'... इसका मतलब है अंधकार से प्रकाश की ओर। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। इस मौके पर खुशी से झूम रहे अयोध्यावासियों ने अपने राजा के स्वागत में घी के दीये जलाए।

इससे कार्तिक मास की सघन अमावस्या की रात जगमगा उठी। और यह पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। दीपावली के मायने भले ही धर्म और परंपरा के अनुसार तरह-तरह के हों लेकिन लोक संस्कृति में इसका मतलब दीया और बाती से ही ज्यादा है।

दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग मान्यता है। एक मान्यता है कि भगवान राम रावण वध करने के बाद दिवाली के दिन ही अयोध्या लौटे थे। इसी खुशी में लोगों ने दीये जलाए और खुशियां मनाई। दूसरी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध इसी दिन किया था। जनता में खुशी की लहर दौड़ गई और लोगों ने घी के दीये जला उत्सव मनाया।

वहीं पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था। इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है

हालांकि मिथिलांचल में धनतेरस के दिन से ही दीये जलाए जाने की परंपरा है। दिवाली के एक दिन पूर्व छोटी दिवाली को लोग यम दिवाली भी कहा करते हैं। इस दिन यम पूजा हेतु घर के बाहर दीये जलाए जाते हैं

इसे विडंबना ही कहेंगे कि कि दुनिया को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने में अहम भूमिका अदा करने वाले कुम्हारों की खुद की हालत अंधेरे में है। महंगाई दिन पर दिन बढ़ती जा रही है लेकिन उनके उत्पाद की कीमत आज भी लोग 

मिट्टी के भाव में ही आंकते हैं। मिट्टी की व्यवस्था कर खरीदना, पूरी मेहनत व लगन से उसे बनाने के बाद भी बाजार में उसकी सही कीमत नहीं मिल पाती।

जबकि अब मिट्टी भी महंगे और पकाने के लिए जलावन भी महंगा। श्रम की तो कीमत भी नहीं जोड़ी जाती। हर तरफ महंगाई है लेकिन दीये के भाव में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। बाजार में भी प्रभाव पड़ा है। लोगों का झुकाव बिजली की रोशनी की ओर अधिक हुआ है जिससे दीये की बिक्री कम पड़ने लगी है। लेकिन पारंपरिक रूप से आज भी और हमेशा मिट्टी के बने दीये का महत्व ही अधिक है।

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