Thursday 16 October 2014

अधिष्ठात्री देवी कोटगाडी-कहा जाता है कि प्रतिदिन ब्रह्म मूर्हूत की पावन बेला पर माता कोटगाडी कुंड में स्नान करने आती हैं


 माता कोटगाडी देवी मंदिर का अपना दिव्य महात्म्य – यह देवी पाताल भुवनेश्वर की न्यायकारी शक्ति के रूप में पूजित - तुरंत फैसला देती हैं देवी- अन्याय का शिकार, दुत्कारे, न्याय की उम्मीद समाप्त  होने, अंधकार ही अंधकार नजर आने- ऐसे निराश प्राणी यहां आते हैं- फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिये ; न्याय की परम पराकाष्ठा प्रदान करने के पश्चात ही कोटगाडी न्याय की देवी के नाम से विख्‍यात – पिथौरागढ जनपद के थल क्षेत्र में है-

उत्तराखण्ड की पावन धरती में भगवान शिव-शंकर सहित तैंतीस कोटि देवताओं के दर्शन होते हैं। आदि जगद्गुरू शंकराचार्य ने स्वयं को इसी भूमि में ही पधारकर धन्य मानते हुये कहा कि इस ब्रह्माण्ड में उत्तराखण्ड के तीर्थों जैसी अलौकिकता व दिव्यता कहीं नहीं है। इस क्षेत्र में शक्तिपीठों की भरमार है। सभी पावन दिव्य स्थलों में से तत्कालिक फल की सिद्व देने वाली माता कोटगाडी देवी मंदिर का अपना दिव्य महात्म्य है। कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन से निष्ठापूर्वक की गयी आराधना व पूजा का फल तुरंत प्राप्त होता है तथा अभीष्ट कार्य की सिद्व होती है। तुरंत फैसला देती हैं देवी- -यह देवी पाताल भुवनेश्वर की न्यायकारी शक्ति के रूप में पूजित है।

किंवदन्तियों के अनुसार जब उत्तराखण्ड के सभी देवता विधि के विधान के अनुसार स्वयं को न्याय देने व फल प्रदान करने में अक्षम व असमर्थता की परिधि में मानते हैं उनकी शक्ति शिवतत्व में विलीन हो जाते हैं, तब अनन्त निर्मल भाव से परम ब्रह्माण्ड में स्तुति होती है कोकिला माता अर्थात कोटगाडी की। संसार में भटका मानव जब चौतरफा निराशाओं से घिर जाती है। हर ओर से अन्याय का शिकार हो जाता है। न्याय की उम्मीद समाप्त हो जाती है और उस प्राणी को दुत्कार ही दुत्कार, अंधकार ही अंधकार नजर आने लगता है। तो संकल्प पूर्वक कोटगाडी की देवी का जिस स्थान से भी सच्चे मन से स्मरण किया जाता है वहीं पर से निराशा के बादल हटने शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि संकल्प पूर्ण होने के बाद देवी माता कोटगाडी के दर्शन की महत्ता अनिवार्य है। किसी के प्रति व्यर्थ में ही अनिष्टकारी भावनाओं से मांगी गयी मनौती हमेशा उल्टी साबित होती है। इस मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिये लगे रहते हैं। दूर-दराज से श्रद्वालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेजकर मनौती मांगते हैं तथा मनौती पूर्ण होने पर भी माता को पत्र लिखते हैं तथा समय व मैय्या के आदेश पर माता के दर्शन के लिये पधारते हैं।

बताया जाता है कि माता के प्रभाव से आजादी के पूर्व अंग्रेज शासन काल में एक जज ने यहां आकर मां से क्षमा याचना की। कहते हैं कि क्षेत्र के एक निर्दोष व्यक्ति को जब कहीं से न्याय प्राप्त नहीं हुआ तब उसने समाज में स्वयं को निर्दोष साबित करन के लिये सच्चे मन से माता कोटगाडी के चरणों में विनय याचना रूची एक पत्र दाखिल किया। चमत्कार स्वरूप कुछ समय के बाद जज ने यहां पहुंचकर उसे निर्दोष बताया। इस प्रकार के सैकडों चमत्कारिक करिश्में श्रद्वालुओं एवं भक्तजनों के बीच सुनाई देते हैं। मंदिर के समीप ही अनेक पावन व सुरम्य स्थल मौजूद हैं। इस पौराणिक मंदिर में शक्ति कैसे और कब अवतरित हुई, अभी तक इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं हो पायी है। कोट का तात्पर्य कालांतर का माना जाता है। न्याय की परम पराकाष्ठा प्रदान करने के पश्चात ही शायद कोटगाडी को न्याय की देवी के नाम से जाना जाता है।

दंत कथाओं के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने बालपन के समय में कालिया नाग का मर्दन किया और तब उसे परास्त कर जलाशय छोडने को कहा तो कालिया नाग व उसकी पत्नियों ने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा याचना कर प्रार्थना की कि हे प्रभु हमें ऐसा सुगम स्थान बतायें जहां हम पूर्णतः सुरक्षित रह सकें। तब भगवान श्री कृष्ण ने इसी कष्ट निवारणी माता की शरण में कालिया नाग को भेजकर अभयदान प्रदान किया था। कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाडी से थोडी दूर पर पर्वत की चोटी पर स्थित है। बताया जाता है कि इस मंदिर की चोटी से कभी भी गरूड आर-पार नहीं जा सकते। ऐसी परम कृपा है कोटगाडी माता की कालिया नाग पर ।

इस मंदिर की शक्ति पर किसी शस्त्र के वार का गहरा निशान स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। किंवन्दियों के
अनुसार किसी ग्वाले की सुंदर गाय अक्सर इस शक्ति लिंग पर आकर अपना दूध स्वयं दुहाकर चली जाती थी। ग्वाले का परिवार बेहद अचम्भे में रहता था कि आखिर इसका दूध कहां जाता है। इस प्रकार एक दिन ग्वाले की पत्नी ने चुपचाप गाय का पीछा किया। जब उसने यह दृश्य देखा तो धारदार शस्त्र से उस शक्ति पर वार कर डाला। कहा जाता है कि इस वार से तीन धाराएं खून की बह निकली जो क्रमशः पाताल, स्वर्ग व पृथ्वी पर पहुंची। पृथ्वी पर खून की धारा प्रतीक स्वरूप यहां पर व्याप्त हैं। वार वाले स्थान पर आज भी कितना ही दूध क्यों न चढा दिया जाये, चढाया गया दूध शक्ति के आधे भाग में शोषित हो जाता है। कालिया नाग मंदिर के दर्शन स्त्रियों के लिये अनिष्ठकारी माना जाता है। जिसे श्राप का प्रभाव कहा जाता है। मंदिर के पास ही माता गंगा का एक पावन जलकुण्ड है। कहा जाता है कि प्रतिदिन ब्रह्म मूर्हूत की पावन बेला पर माता कोटगाडी इस कुंड में स्नान करने आती हैं। यहां पर सच्चे श्रद्वालुओं को अक्सर इस समय माता के वाहन शेर के दर्शन होते हैं। इस प्रकार की सैकडों कथायें इस शक्तिमय देवी के बारे में प्रचलित हैं। जो माता कोटगाडी के विशेष महात्म्य को दर्शाती हैं।

No comments:

Post a Comment