Wednesday 17 September 2014

कैसे अजय बिष्ट बने महंत आदित्यनाथ-अर्जुन की तरह ही आज भी रक्षा करने का ये जज्बा गोरखपुर की धरा पर कायम है-महंत आदित्यनाथ


पौड़ी जिले के पंचेर गांव में नंद सिंह बिष्ट के घर पांच जून 1972 को जन्मे बालक का नाम अजय रखा गया।

14 सितंबर को उनके जीवन में नया अध्याय जुड़ गया। महंत अवेद्यनाथ के समाधिस्थ होने के साथ ही बेशुमार लोगों और संत समाज के गणमान्य लोगों के बीच उन्होंने गोरक्षपीठाधीश्वर का दायित्व संभाल लिया। वैसे उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र जीवन से ही हो गई थी। गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएससी की डिग्री हासिल करने तक उनकी गिनती अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रखर कार्यकर्ताओं के रूप में होने लगी थी। नाम के अनुरूप बाल्यावस्था से हर काम की तेजी से अजय ने न सिर्फ अपने अजेयभाव का प्रदर्शन किया बल्कि कम उम्र में संत पंथ को अपनाकर न सिर्फ आदित्यनाथ बन गए बल्कि वोटों की शक्ल में आम लोगों का दिल जीतकर 1998 में सबसे कम उम्र सांसद बनने का गौरव भी हासिल किया।

इसके बाद 22 साल की उम्र में परिवार त्यागकर वह योगी स्वरूप में आ गए। 1993 से अपना केंद्र गोरखपुर बना लिया और गोरखनाथ मंदिर में निरंतर बढ़ते सेवाभाव ने उन्हें 15 फरवरी 1994 को उनको गोरक्षपीठाधीश्वर के उत्तराधिकारी की पदवी तक पहुंचा दिया।इसके बाद 1998 में जब फिर लोकसभा का चुनाव की घोषणा हुई तो गोरक्षपीठाधीश्वर ने अपनी सियासी विरासत भी उन्हें सौंपते हुए चुनाव लड़ाने का फैसला लिया।इस चुनाव में जीतकर उन्हें सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव हासिल हुआ। उसके बाद से वह लगातार पांचवीं बार चुनाव जीतकर बाल्यवस्था के अपने नाम के अनुरूप खुद के अजेय भाव को प्रदर्शित कर रहे हैं।
एक कार्यक्रम के दौरान उनके भाषण ने ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ को प्रभावित किया और उनके आह्वान पर रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़ गए। गतिविधियों के साथ काम के प्रति समर्पण का भाव बढ़ता देख महंत अवेद्यनाथ उन्हें अपना शिष्य बनाने पर हामी भर दी।

1996 के लोकसभा चुनाव में जब महंत अवेद्यनाथ गोरखपुर संसदीय सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे तो चुनाव का कुशल संचालन करके उन्होंने अपनी राजनीतिक सूझ का खास परिचय दिया।

जब सम्पूर्ण पूर्वी उत्तर प्रदेश जेहाद, धर्मान्तरण, नक्सली व माओवादी हिंसा, भ्रष्टाचार तथा अपराध की अराजकता में जकड़ा था उसी समय नाथपंथ के विश्व प्रसिद्ध मठ श्री गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर के पावन परिसर में शिव गोरक्ष महायोगी गोरखनाथ जी के अनुग्रह स्वरूप माघ शुक्ल 5 संवत् 2050 तदनुसार 15 फरवरी सन् 1994 की शुभ तिथि पर गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ जी का दीक्षाभिषेक सम्पन्न किया।

अपने धार्मिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करने के साथ-साथ योगी जी निरंतर समाज से जुड़ी समस्याओं के निवारण के लिए प्रयास करते रहते हैं। व्यक्तिगत समस्याओं से लेकर विकास योजनाओं तक की समस्याओं का हल वे बहुत ही धैर्यपूर्वक निकालते हैं।



1998 : 12वीं लोक सभा के लिए पहली बार गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित।
1999 : 13वीं लोक सभा के लिए दूसरी बार गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित।
2004 : 14वीं लोक सभा हेतु पुनः तीसरी बार निर्वाचित।
2009 : 15वीं लोक सभा हेतु पुनः चौथी बार निर्वाचित।
2014 : 16वीं लोक सभा हेतु पुनः पाँचवी बार निर्वाचित।

अपने अज्ञातवास के अंतिम समय में अर्जुन ने विराटनगर,नेपाल के राजा की गायो के हरण कर चुके कौरवो से जिस जगह युद्ध कर रक्षा की वो जगह ही  गो रक्षा पुर या गोरखपुर कहलाई. 

 अर्जुन की तरह ही आज भी रक्षा करने का ये जज्बा गोरखपुर की धरा पर कायम है आज की यह परंपरा गोरक्ष पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ निभा रहे है. जिस ‘समाज की रक्षा’ संविन्धान,सेना, प्रशासन रक्षा नहीं कर पा रहा है उसकी रक्षा योगी आदित्यनाथ बिना पुकारे ही कर रहे है. वे कौन सी बात से ‘रक्षा’ कर रहे है या  किस तरह से ‘रक्षा’ कर रहे है वो भी किसी से भी छुपा नहीं है.

हिन्दू जनमानस में अपनी ख़ास पहचान रखने वाले गोरखपुर का ‘गोरक्ष पीठ’ नाम का मठ नाथ सम्प्रदाय के हठ-योगियों का गढ रहा, जाति-पाति से दूर इस सम्प्रदाय के शाखा तिब्बत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से लेकर पूरे पश्चिम उत्तर भारत में फैली थी. नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ को हिन्दू समेत तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्ध योगी माना जाता है. रावलपिंडी शहर को बसाने वाले राजपूत राजा बप्पा रावल के गोरखनाथ को अपना गुरु मानते थे व् इन्ही के प्रेरणा से मोरी (मौर्या) सेना को एकत्र कर मुहम्माब बिन कासिम के नेतृत्व में अरब हमलो से भारत की रक्षा की, आज उसी प्रकार से ‘समाज की रक्षा’ गोरखनाथ मठ के उत्तराधिकारी होने के नाते योगी आदित्यनाथ कर रहे है.

योगी जी की कर्मभूमी उत्तर प्रदेश का सबसे पूर्वी हिस्सा है, जिसमे गोरखपुर मंडल के देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर,महाराजगंज, बस्ती मंडल के बस्ती,संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर और आज़मगढ़ मंडल के आज़मगढ़, बलिया,मऊ जिले शामिल हैं. ये तीनो मंडल एक ख़ास विचारधारा से प्रभावित हो साम्प्रदायिकता का जवाब साम्प्रदायिकता की राजनीति की तरफ आकृष्ट हुए है. कई दशको से मठ आधारित ये राजनीति अपने शुरुवाती दिनों के सोफ्ट हिंदुत्व से उग्र हिन्दुत्ववादी हो चुकी है तो इसका श्रेय योगी आदित्य नाथ के आक्रामक स्वाभाव को ही जाता है. पूर्व में इसी विचारधारा के तहत महंत अवैद्य नाथ ने 1989 और 1991 में गोरखपुर से लोकसभा का चुनाव जीता व् उनके बाद से उनके उत्तराधिकारी बने योगी आदित्यनाथ ने लगातार 1996,1998, 1999 ,2004 और 2009 के चुनाव के चुनाव जीत अपनी इसी राजनीति के सफल होने का प्रमाण दिया.

जनप्रतिनिधि के रूप में उन्होंने जापानी इंसेफलाइटिस से बचाव और उसके उपचार के लिए उलेखनीय प्रयास किये, उसके अलावा गोरखपुर में सफाई व्यवस्था व् राप्ती नदी पर बांध बनवाने जैसे कई विकास के कार्य कराए है. सदियों से श्रद्धा का केंद्र रहने वाले गोरखनाथ पीठ के महंत होने की वजह से वे कभी भी मतदाता के सामने हाथ नहीं जोड़ते, उल्टे मतदाता उनके पैर छूकर आर्शीवाद मांगते हैं. सांसद होने के नाते कोई समस्या बयान करता तो वे सरकारी प्रक्रिया का इंतज़ार किये बिना  तुरंत संबंधित अधिकारी से बात कर समस्या का अपने स्तर पर निपटारा कर देते है. कुछ वर्ष पहले एक माफिया डॉन के द्वारा उनके एक मतदाता के मकान पर कब्जे से क्षुब्द, योगी ने सीधे ही उस मकान पर पहुँच अपने समर्थको के द्वारा उसे कब्जे से मुक्त करवा दिया ऐसे कई और मामलें है जो उनकी धार्मिक रहनुमाई से रोबिनहुडाई तक के सफ़र की कथा बयान करती है.

2009 में पार्टी पर मजबूत पकड़, मठ से प्राप्त धार्मिक हैसियत, विकास और हिन्दू युवा वाहिनी जैसे युवाओ के संगठन के बदौलत उन्होंने करिश्माई रूप से स्वयं की गोरखपुर शहर व् कांग्रेस के दिग्गज महावीर प्रसाद को कमलेश पासवान से हरवा कर बांसगांव लोकसभा सीट जीत ली.आदित्यनाथ भाजपा के टिकट पर सिर्फ चुनाव लड़ते हैं, और पार्टी की भी राज्य में अपने घटी हैसीयत के कारण उनकी ब्रांड वाली राजनीति को बाबूलाल कुशवाहा की तरह मजबूरन स्वीकारना पड़ता है. वे पार्टी की सांगठनिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करके उसके पदों पर अपने समर्थकों को तो बिठाते हैं पर भाजपा संगठन की बनिस्बत वे अपने जन कार्यक्रम  हिन्दू युवा वाहिनी और हिन्दू महासभा के बैनर तले चलाते हैं. हालंकि नितिन गडकरी के मौजूदा  कार्यकाल में पार्टी पर उनकी पकड़ कुछ ढीली पड़ी है. पार्टी में धीरे धीरे उनकी उपेक्षा भी शुरू हो गयी है हुई मसलन इन चुनावो के मद्देनज़र पिछले नवम्बर माह में राजनाथ सिंह ने जो सद्भावना यात्रा गोरखपुर में की उसमे उन्होंने योगी को बुलाना तक उचित नहीं समझा, फिर पार्टी ने उनकी युवा वाहिनी की अपेक्षा राजनैतिक लोगो को उनके प्रभाव वाले इलाको में टिकट दे दिए. गडकरी ने बाद में बयान दिया की कुछ बड़े नेता अपनी मनमानी कर जितने वाले कार्यकर्ताओ की अपेक्षा अपने समर्थको को टिकट देने का मुझ पर काफी दबाव बना रहे है. स्वजातीय राजपूत नेता व् भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही व् गोरखपुर शहर के पूर्व विधायक शिव प्रताप शुक्ल से उनकी रार किसी से छुपी नही




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