Monday 8 September 2014

सुरकण्डा देवी-यहां कदम रखते ही मन पवित्र अनुभूतियों से भर जाता है-श्रद्धा से शीश झुक जाता है।




सुरकण्डा देवी शक्तिपीठ गढवाल का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। मान्यता है कि 52 शक्तिपीठों में यह बहुत ही महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है। वैदिक कथाओं के अनुसार देवी सती के सिर वाला भाग यहां पर गिरा था, इसलिए इस स्थान को सुरकुट पर्वत के नाम से भी जाना जाता है और यह शक्तिपीठ सुरकंडा के नाम से प्रसिद्ध है। यह शक्ति का स्थल है। सुरकण्डा देवी मन्दिर के पास में ही शिव, भैरव और हनुमान मन्दिर भी हैं।

केदारखंड में जिन 52 शाक्तिपीठों का जिक्र किया गया है दरअसल सुरकण्डा देवी उन्हीं मे से  एक है। इसे सुरेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। आज जिस पर्वत शिखर पर यह मंदिर स्थित है उसे सुरकूट पर्वत भी कहा जाता है। मंदिर के पुजारी ज्ञानदेव लेखवार बताते हैं कि  श्जब राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें अपने दामाद भगवान शंकर को छोड़ सभी देवाताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन फिर भी दक्ष पुत्री सती यज्ञ में शामिल होने पहुंच गई। भगवान शंकर को न बुलाए जाने का कारण पूछे जाने पर राजा दक्ष ने महादेव के लिए अपमान भरे शब्द कहे। सती शब्दों के इन तीक्ष्ण बाणों को सहन न कर सकी और धधकते हवन कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी। रौद्र रूप धर भगवान शंकर ने वहां पहुंच शव को त्रिशूल पर लटका हिमालय की ओर रूख किया  उसी दौरान जहां जहां सती के अंग गिरे वे सिद्वपीठ कहलाए। इसी सुरकूट पर्वत पर मां का सिर गिरा था, जो आज सुरकुण्डा देवी मंदिर के रूप में  जाना जाता है। इसके अलावा इसी स्थान पर कभी देवराज इंद्र ने भी घोर तपस्या की थी।

यह शक्तिपीठ मसूरी और चम्बा के बीच स्थित है। धनोल्टी से छह किलोमीटर दूर कद्दूखाल नाम की एक जगह है जहां से सुरकण्डा देवी के लिये रास्ता जाता है। यहां से दो किलोमीटर पैदल चलना पडता है। कद्दूखाल जहां 2490 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं सुरकण्डा देवी की ऊंचाई 2750 मीटर है यानी दो किलोमीटर पैदल चलकर 260 मीटर चढना कठिन चढाई में आता है।

इसकी दूर- दूर तक मान्यता है। यहां कदम रखते ही मन पवित्र अनुभूतियों से भर जाता है, श्रद्धा से शीश झुक जाता है। सारे वातावरण में हवन का सुगंध ब्याप्त रहता है । मंदिर में देवी की आरती के समय अद्भुत दृश्य होता है। यहां मॉ की पूजा-अर्चना कर एक अद्भुत शान्ति की प्राप्त होती है।

वैसे तो मंदिर में देवी दर्शन के लिए लोगों का आना-जाना लगा रहता है  लेकिन गंगा दशहरे के अवसर पर देवी के दर्शनों का विशेष महत्व होता है। गंगा दशहरा के अवसर पर यहां विभिन्न जगहों से आए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। इस दौरान आस-पास के गांवों समेत दूर-दराज के श्रद्धालु भी ख्रासी संख्या में मौजूद रहते हैं । इसलिए तीन चार दिनों तक मंदिर में अधिक भीड़ रहती है। कतारों में लगे भक्त देर शाम तक माता के दर्शन करते हैं । श्रद्धालु पूरे भक्तिभाव से माता के दर्शन लाभ अर्जित करते हैं। इन दिनों में एक लाख से अधिक श्रद्धालु देवी के दर्शन करते हैं। श्रद्धालु मां का दर्शन कर पुण्य लाभ कमाते हैं और संपन्नता व खुशहाली की मन्नत मांगते हैं ।

इस अवसर पर कद्दूखाल में एक मेले का आयोजन किया जाता हैं । इस मेले में भी भारी भीड़ देखने को मिलती है। इस दौरान कई गांवों के लोग अपने ईष्टदेवों की डोली भी लेकर यहां आते हैं।

नवरात्रि में भी श्रद्धालु यहां पर आकर देवी की कृपा प्राप्त करते है। इन दिनों में यहां पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। अखंड देवी पाठ रखे जाते हैं और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन इत्यादि की जाती है।
हाल ही में प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कर नया मंदिर बनाया गया है,  पर खास बात यह है कि मंदिर के स्वरूप को पौराणिक ही रखा गया है। मंदिर में 42 खिड़कियां और 7 दरवाजे बनाए गए हैं। पहाड़ की लोक कला को ध्यान में रखते हुए दरवाजों पर नक्काशी का कार्य भी किया गया है। मंदिर की पौराणिकता को देखते हुए छत्त को पठाली स्लेट से बनाया गया है।

मंदिर से हिमालय का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। यहां से गढवाल हिमालय की चोटियां दिखती हैं। पीछे मुडकर देखें तो पहाड धीरे धीरे नीचे होते चले जाते हैं, दक्षिण दिशा में ऋषिकेश और देहरादून भी दिखता  है।


कहां ठहरें- 
अगर आप मसूरी में अपना होटल न छोड़ना चाहें तो एक दिन में आप अप डाउन कर सकते हैं। क्योंकि कद्दूखाल से मसूरी की दूरी महज 35 किमी है। अगर आप सुबह शाम होने वाली पूजा में शामिल होना चाहते हैं तो मंदिर प्रबंधन की  धर्मशालाओं में भी ठहर सकते हैं। मगर इनमें अधिक सुविधाओं की उम्मीद न करें। इन सब के अलावा कद्दूखाल से 8 किमी की दूरी पर धनोल्टी में आपको गढ़वाल मंडल विकास निगम की डोमेट्ररी से लेकर सुपर डीलक्स रूम तक मिल जाएंगे।

कैंसे पहुंचेः
 यह स्थान दिल्ली से लगभग 315 किमी. की दूरी पर है। आप दिल्ली से मसूरी वाया देहारदून होते हुए सुरकण्डा पहुंच सकते हैं। अगर आप अपने वाहन से जाने की सोच रहे हैं तो जरूरी नहीं कि मसूरी भी होते हुए जाएं क्योंकि देहरादून से आगे बढ़ने पर मसूरी से  2 किमी पहले ही एक रास्ता सुरकण्डा की ओर निकल जाता है। 

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