Sunday 21 June 2015

इरादे पक्के और हौसले बुलंद हों तो दुनिया की हर मुश्किल आसान हो जाती है। यूनेस्को’ पहुंचा उत्तराखंड के बेटे वीरेंद्र रावत का ‘ग्रीन’ आइडिया



इरादे पक्के और हौसले बुलंद हों तो दुनिया की हर मुश्किल आसान हो जाती है। उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ी गांव से निकलकर दुनिया में नाम रोशन करने वाले वीरेंद्र रावत इसकी मिसाल हैं।

उन्होंने न केवल ग्रीन स्कूल कांसेप्ट ईजाद किया बल्कि आज देश के 100 से ज्यादा ग्रीन स्कूल उनके दिशा निर्देशन में संचालित हो रहे हैं। वीरेंद्र ने बोस्टन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में आयोजित आठवें एनुअल एमए ग्रीन स्कूल समिट में देश में चल रहे ग्रीन स्कूल कांसेप्ट को प्रस्तुत कर खूब वाहवाही बटोरी।

मूलरूप से टिहरी गढ़वाल में प्रतापनगर ब्लॉक की उपली रमौली में हेरवाल गांव में मुकुंद सिंह रावत व बच्चा देवी रावत के घर जन्मी छह संतानों में सबसे बड़े वीरेंद्र रावत की प्रारंभिक शिक्षा दीप गांव में हुई। उन्होंने राजकीय इंटर कालेज तोलीसैण, टिहरी से 12वीं करने के बाद गढ़वाल विवि से स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
1994 में वह नौकरी के सिलसिले में अहमदाबाद चले गए, जहां उन्होंने 1200 रुपये वेतन पर नौकरी की। रावत पर उत्तराखंड की हरियाली का गहरा असर था। वर्ष 2010 में उन्होंने अहमदाबाद में पहले ग्रीन स्कूल की स्थापना की।

नरेंद्र मोदी ने भी किया ग्रीन स्कूल का निरीक्षण
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को जब इस ग्रीन स्कूल के बारे में पता चला तो उन्होंने खुद जाकर इसका निरीक्षण किया। वीरेंद्र को तत्काल प्रदेश में इस तरह के ग्रीन स्कूल के प्रोत्साहन के लिए सलाहकार नियुक्त कर लिया।

आज वीरेंद्र रावत सीबीएसई के 10 से अधिक संबद्ध ग्रीन स्कूलों के संचालक होने के साथ ही 100 से अधिक ग्रीन स्कूलों की देखरेख का जिम्मा संभाल रहे हैं। भारत में ग्रीन एजूकेशन के क्षेत्र में दिशा निर्देशक के तौर पर वह 100 सबसे सफल निर्देशकों में गिने जाते हैं।

वीरेंद्र पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें बोस्टन यूनिवर्सिटी अमेरिका ने अपने आठवें वार्षिक एमए ग्रीन स्कूल समिट के लिए आमंत्रित किया और सम्मानित किया।

क्या है ग्रीन स्कूल कांसेप्ट
ग्रीन स्कूल कांसेप्ट पृथ्वी, जल, हवा, आग व आकाश पर आधारित है। इन स्कूलों में एंट्री करते ही प्राकृतिक सुंदरता का अहसास होता है। वीरेंद्र ने इस कांसेप्ट के तहत स्कूलों के लिए अलग से सिलेबस डिजाइन किया।
वह न केवल बोर्ड का सिलेबस पढ़ते हैं बल्कि उन्हें पर्यावरण मित्र और उससे कमाई का रास्ता भी सिखाया जाता है। इसके लिए स्कूलों में वह कार्बन आधारित आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं।
बारिश का 100 प्रतिशत पानी ही सभी प्रक्रियाओं में इस्तेमाल किया जाता है। वेस्ट से खाद बनाने और पेपर रिसाइक्लिंग से लेकर प्लास्टिक रिसाइक्लिंग तक का पूरा काम पढ़ाई के दौरान ही बच्चे को सिखाया जाता है।

यहां कमाया नाम
वर्ष 2014 में डिजिटल लर्निंग मैनेजमेंट ने उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़े गेम चेंजरों की सूची में पहले स्थान पर रखा। वीरेंद्र रावत दुनिया में 300 से अधिक ग्रीन स्कूल संचालित करने वाली संस्था ‘ग्रीन स्कूल एलायंस ग्लोबल बेस्ट यूएसए’ के कॉर्डिनेटर हैं।

इसके अलावा बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट, सीयू शाह यूनिवर्सिटी, गुजरात, एनवायरमेंट एंड ग्रीन टेक्नोलॉजी बोर्ड गुजरात, टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी अहमदाबाद, इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर एनवायरमेंट एजूकेशन यूएसए, एनवायरमेंट एजूकेशन कमेटी, सीबीएसई के सदस्य होने के साथ ही यंग मास्टर प्रोग्राम ऑन सस्टेन एबिलिटी, यूनेस्को के प्रमाणित प्रशिक्षक भी हैं।

इसी वर्ष आयोजित वाइब्रेंट गुजरात 2015 में वीरेंद्र सिंह रावत ने ग्रीन स्कूल प्रोजेक्ट को पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत किया।

तीन साल में छात्र, शिक्षक कोई बीमार नहीं
वीरेंद्र ने बोस्टन में अपने लेक्चर में बताया कि बेहद प्राकृतिक किस्म के इन स्कूलों में तीन वर्षों से न तो कोई छात्र बीमार हुआ और न ही किसी शिक्षक ने बीमारी की छुट्टी ली है।
ग्रीन उद्यमियों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। छात्रों में उद्यमिता विकास होने के साथ ही पढ़ाई के दौरान वह पर्यावरण भी बचाते हैं और कमाई भी सीखते हैं। शादी समारोहों में केवल ग्रीन गिफ्ट का ही प्रचलन भी तेजी से बढ़ गया है।

2020 तक 2000 ग्रीन स्कूल का लक्ष्य

इन दिनों अमेरिका में मौजूद वीरेंद्र रावत ने ई-मेल के माध्यम से बताया कि आज वह गुजरात में 100 ग्रीन स्कूलों के निर्देशक हैं, जिनमें 61 सरकारी ग्रीन स्कूल शामिल हैं। उनका मकसद वर्ष 2020 तक 2000 ग्रीन स्कूलों की स्थापना है।

विरेंद्र पहले और अकेले भारतीय बन गए हैं

केंद्र ने यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) की ओर से पहली बार मिलने जा रहे ‘यूनेस्को-जापान प्राइज ऑन एजुकेशन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ के लिए विरेंद्र का नाम भेज दिया है। यह मुकाम हासिल करने वाले विरेंद्र पहले और अकेले भारतीय बन गए हैं।


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